सरायकेला-खरसावां जिला, झारखंड – एक विस्तृत परिचय 2025

March 24, 2025
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सरायकेला-खरसावां जिला, झारखंड – एक विस्तृत परिचय 

परिचय:
सरायकेला-खरसावां जिला झारखंड राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध जिला है। यह जिला अपने शाही इतिहास, आदिवासी संस्कृति और प्रसिद्ध ‘छऊ नृत्य’ के लिए पूरे देश में जाना जाता है। सरायकेला-खरसावां जिला 1 अप्रैल 2001 को पश्चिमी सिंहभूम जिले से अलग होकर झारखंड का 24वां जिला बना। इसका मुख्यालय सरायकेला में है। यह जिला खनिज, उद्योग और सांस्कृतिक धरोहरों का केंद्र माना जाता है।

चित्र:Seraikela Kharsawan in Jharkhand (India).svg - विकिपीडिया

सरायकेला-खरसावां जिला का भौगोलिक स्थिति और क्षेत्रफल:
सरायकेला-खरसावां जिला झारखंड के दक्षिण में स्थित है। इसके पूर्व में पश्चिम बंगाल का पुरुलिया जिला, पश्चिम में पश्चिमी सिंहभूम, उत्तर में रांची और दक्षिण में पूर्वी सिंहभूम जिला है। यह जिला 3,657 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। जिले का अधिकांश भाग पठारी और पहाड़ी क्षेत्र है, जहाँ साल और अन्य वृक्षों से घने जंगल फैले हुए हैं।

 

सरायकेला-खरसावां जिला का इतिहास:
सरायकेला-खरसावां का इतिहास काफी प्राचीन और समृद्ध रहा है। पहले यह इलाका ‘कोल्हान’ क्षेत्र का हिस्सा था, जहाँ मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय निवास करते थे। मुगल काल में यह क्षेत्र स्थानीय राजाओं के अधीन रहा। बाद में सरायकेला और खरसावां दो अलग-अलग रियासतें बनीं, जिनकी अपनी स्वतंत्र सत्ता थी। अंग्रेजों के समय में ये दोनों रियासतें ब्रिटिश संरक्षित रियासतों में शामिल कर ली गईं।

स्वतंत्रता के बाद 1948 में सरायकेला और खरसावां रियासतों का विलय भारत में हुआ। 2001 में प्रशासनिक दृष्टि से इन दोनों क्षेत्रों को मिलाकर सरायकेला-खरसावां जिला बनाया गया।

सरायकेला-खरसावां जिला का जनसंख्या और जनजातियाँ:
2011 की जनगणना के अनुसार सरायकेला-खरसावां जिले की कुल जनसंख्या लगभग 10 लाख है। यहाँ की प्रमुख जनजातियाँ – हो, संथाल, मुंडा, उरांव, भूमिज आदि हैं। आदिवासी आबादी जिले की कुल आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है। यहाँ हिंदी, बंगाली, उड़िया, संथाली, हो, मुंडारी आदि भाषाएँ बोली जाती हैं। आदिवासी संस्कृति, रीति-रिवाज और परंपराएँ यहाँ के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।

सरायकेला, खरसावां जिले में कितने ब्लॉक हैं?

सरायकेला खरसावां जिले में सरायकेला और चांडिल नामक दो उपमंडल और सरायकेला, खरसावां, गम्हरिया, राजनगर, कुचाई, चांडिल, इचागढ़, नीमडीह, कुकरू नामक नौ ब्लॉक /मंडल शामिल हैं। इसका क्षेत्रफल लगभग 2724.55 वर्ग किलोमीटर है। 

सरायकेला जिले में कितनी पंचायतें हैं?

पंचायत
उपखंड प्रखण्ड पंचायत
सरायकेला राजनगर 21
सरायकेला कुचाई 10
चांडिल चांडिल 17
चांडिल ईचागढ़ 14

सरायकेला खरसावां जिले में सरायकेला और चांडिल नामक दो उपमंडल और सरायकेला, खरसावां, गम्हरिया, राजनगर, कुचाई, चांडिल, इचागढ़, नीमडीह, कुकरू नामक नौ ब्लॉक /मंडल शामिल हैं। इसका क्षेत्रफल लगभग 2724.55 वर्ग किलोमीटर है। .

 

सरायकेला-खरसावां जिला का अर्थव्यवस्था और खनिज:
यह जिला खनिज और औद्योगिक दृष्टि से झारखंड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ लौह अयस्क, मैंगनीज, चूना पत्थर, डोलोमाइट आदि खनिजों का भंडार है। जिले के आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में कई बड़ी कंपनियाँ और कारखाने स्थापित हैं, जिनमें ऑटो पार्ट्स, स्टील, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य उद्योग शामिल हैं। यहाँ टाटा समूह, जिंदल और कई छोटी-बड़ी कंपनियों के कारखाने हैं।

कृषि भी यहाँ की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा आधार है। धान, मक्का, तिलहन और दलहन प्रमुख फसलें हैं। इसके अलावा जंगलों से लाख, तेंदू पत्ता, महुआ और अन्य वन उत्पाद भी मिलते हैं।

सरायकेला-खरसावां जिला का पर्यटन स्थल:
सरायकेला-खरसावां जिला अपने ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ घूमने लायक कई प्रमुख स्थल हैं:

  1. सरायकेला राजमहल: ऐतिहासिक सरायकेला रियासत का यह किला अब भी अपनी भव्यता लिए खड़ा है।
  2. खरसावां महल: खरसावां रियासत का यह किला इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
  3. छऊ नृत्य का गढ़: सरायकेला-खरसावां जिला विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य का जन्मस्थल है, जिसे यूनेस्को ने अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया है।
  4. डोमबाड़ी जलप्रपात: हरा-भरा और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह जलप्रपात पर्यटकों को आकर्षित करता है।
  5. खरसावां शहीद स्थल: यहाँ हर साल 1 जनवरी को शहीद दिवस मनाया जाता है, जहाँ 1948 में कई आदिवासियों की गोलीकांड में मौत हुई थी।

सरायकेला-खरसावां जिला का संस्कृति और परंपराएँ:
सरायकेला-खरसावां की संस्कृति मुख्य रूप से आदिवासी परंपराओं और त्योहारों पर आधारित है। यहाँ के प्रमुख त्योहारों में करम, सोहराई, सरहुल, माघ पर्व, छऊ महोत्सव आदि प्रमुख हैं।

  • छऊ नृत्य: यह जिला विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य की जन्मभूमि है। छऊ एक मुखौटा नृत्य है, जिसमें योद्धा वेशभूषा में युद्ध और प्रकृति के दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं। इसमें ढोल, नगाड़ा, शहनाई जैसे वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है।
  • लोकगीत और नृत्य: आदिवासी लोकगीत, करम गीत, सोहराई गीत आदि यहाँ की पहचान हैं। गाँव-गाँव में इन गीतों के साथ सामूहिक नृत्य होता है।

सरायकेला-खरसावां जिला का शिक्षा और स्वास्थ्य:
सरायकेला-खरसावां शिक्षा के क्षेत्र में धीरे-धीरे प्रगति कर रहा है। जिले में कई सरकारी और निजी स्कूल, कॉलेज हैं। आदित्यपुर और सरायकेला में इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक कॉलेज भी हैं।

स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो जिले में सरकारी अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। हालांकि ग्रामीण इलाकों में अभी भी स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति मजबूत करने की जरूरत है।

सरायकेला-खरसावां जिला का उद्योग और रोजगार:
सरायकेला-खरसावां जिला झारखंड का एक उभरता हुआ औद्योगिक हब है। यहाँ का आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र पूरे झारखंड का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है, जहाँ सैकड़ों छोटी-बड़ी कंपनियाँ स्थापित हैं। स्टील, ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि क्षेत्र में यहाँ रोजगार के अच्छे अवसर हैं। इसके अलावा कृषि और वन उत्पाद आधारित छोटे उद्योग भी लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं।

सरायकेला-खरसावां जिला का परिवहन और संचार:
यह जिला सड़कों और रेलवे से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। टाटा-चाईबासा-रांची मार्ग से सरायकेला-खरसावां जुड़ा है। आदित्यपुर और गम्हरिया प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं, जहाँ से देश के बड़े शहरों के लिए ट्रेनें मिलती हैं। बस सेवा भी रांची, जमशेदपुर और अन्य जगहों के लिए उपलब्ध है। मोबाइल और इंटरनेट सुविधा भी तेजी से बढ़ रही है।

 

सरायकेला-खरसावां जिला का समस्याएँ और चुनौतियाँ:
हालांकि सरायकेला-खरसावां जिला औद्योगिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, फिर भी कुछ प्रमुख समस्याएँ हैं:

  • आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
  • गरीबी और बेरोजगारी
  • कई इलाके नक्सल प्रभावित होने के कारण विकास में बाधा
  • जल, जंगल और जमीन की समस्या

संभावनाएँ:
सरायकेला-खरसावां में पर्यटन, खनिज आधारित उद्योग, कृषि और वन उत्पादों के विकास की असीम संभावनाएँ हैं। छऊ नृत्य को विश्व स्तर पर पहचान दिलाकर पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। यदि सरकार और प्रशासन शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे पर ध्यान दे, तो यह जिला झारखंड का सबसे विकसित जिला बन सकता है।

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